व्यंग – एक बोतल और क़सम पर बिकता लोकतंत्र
रामलाल अपने दरवाजे पर निश्चिन्त बैठा हुआ था. उतना ही निश्चिन्त जितना कि दोनों हाथों से तंबाकू बनाते हुए एक आम भारतीय हो सकता है. चुनाव से पहले भारत में एक खास प्रकार का रोजगार पैदा होता है. ये रोजगार सरकार पैदा नहीं करती. ये उनकी जरुरत बन जाती है. इसे जनता अपनी चालाकी से पैदा करती है. जिसमें आम लोगों को कमाई में पैसे … पढ़ना जारी रखें व्यंग – एक बोतल और क़सम पर बिकता लोकतंत्र