व्यंग – एक बोतल और क़सम पर बिकता लोकतंत्र

रामलाल अपने दरवाजे पर निश्चिन्त बैठा हुआ था. उतना ही निश्चिन्त जितना कि दोनों हाथों से तंबाकू बनाते हुए एक आम भारतीय हो सकता है. चुनाव से पहले भारत में एक खास प्रकार का रोजगार पैदा होता है. ये रोजगार सरकार पैदा नहीं करती. ये उनकी जरुरत बन जाती है. इसे जनता अपनी चालाकी से पैदा करती है. जिसमें आम लोगों को कमाई में पैसे … पढ़ना जारी रखें व्यंग – एक बोतल और क़सम पर बिकता लोकतंत्र

व्यंग – जब नुक्कड़ में मेरा सामना नए नए राष्ट्रवादी से हुआ

उस तरफ नुक्कड़ पे एक नवोदित राष्ट्रवादी भाई मिल गए थे। बड़े विद्वान, आधुनिक और आला-मिजाज… खिजाब से रँगे बालों का घना गुलछट, माथे पर तिलक, दाढ़ी-मूँछ सफाचट, कंधे पर केसरिया गमछा, नीली जीन्स और सूती का सफेद कुर्ता! मुँह में पान, कुर्ते की कॉलर के पीछे से झाँकती पीली जनेऊ और पैरों में घिसी हुई हवाई चप्पल उनकी शोभा खूब बढ़ा रहे थे। अँगोछे … पढ़ना जारी रखें व्यंग – जब नुक्कड़ में मेरा सामना नए नए राष्ट्रवादी से हुआ

व्यंग – भाजपा मेम्बरशिप की भावी ख़बरें कुछ ऐसी हो सकती हैं

इन दिनों दुनिया की कथित सबसे पार्टी कहलाने वाली भाजपा में जाने वालों की संख्या में तेज़ी आयी है, साथ ही विधायकों की खरीद फरोख्त चरम पर है, कैसे भी करके भाजपा की झोली भरना है, अगर ऐसा ही रहा तो भविष्य में भाजपा के सदस्यता अभियान के बारे में छपने वाली ख़बरें शायद कुछ इस तरह होंगी रिश्तेदार की शादी से लौटते वक़्त सुनसान … पढ़ना जारी रखें व्यंग – भाजपा मेम्बरशिप की भावी ख़बरें कुछ ऐसी हो सकती हैं