क्या पूरे डिब्बे में एक भी शख़्स ऐसा नहीं था जिसमें इंसानियत बाक़ी थी – शहज़ादा कलीम

ख़ामोशी तो अब तोड़नी पड़ेगी…
क्योंकि इंसानियत अब मर चुकी है…

कहाँ हैं फेसबुक पर नफ़रतों से भरे
मुल्ला और कटुवा कहकर ग़ाली देने वाले लोग…
दीजिये ख़ूब गालियाँ…

लेकिन याद रखना यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं
जब देश टकराव का ज़ख्म झेलेगा..और उस वक़्त
न तो नफ़रतों के लिए जगह बचेगी और न ही ग़ालियों के लिये..
तब इस देश को बचाना मुश्किल होजायेगा..क्योंकि
इतिहास गवाह है जिस मुल्क में लोग मज़हब के नाम पर
एक दूसरे के जान के भूखे होजायें…..वो देश सिर्फ़ और
सिर्फ़ बर्बाद हुआ है..!

जिसतरह.. ट्रेन में दिल्ली से ईद की ख़रीदारी करके
वापस आरहे वल्लभगढ़ के मदरसे के तीन बच्चों को…मज़हब पर तंज़ करने और फ़िर उसपर जवाब देने पर कुछ लफ़ंगों की
भीड़ ने तीनों लड़कों को मार मारकर लहूलुहान कर ट्रेन से नीचे
फ़ेक दिया..जिसमें से ज़ुनैद नाम के एक लड़के की मौत होगयी
उससे लगता है…हिंदुस्तान में अब मुसलमान होना ही गुनाह है..!

नफ़रतों का ये आलम के भीड़ लड़कों को बुरी तरह पीट रही थी..और डिब्बे में एक भी शख़्स ने उन्हें रोकने और बचाने की
कोशिश नहीं की……

क्या पूरे डिब्बे में एक भी शख़्स ऐसा नहीं था जिसमें
इंसानियत बाक़ी थी….

वाह साहब वह…..क्या देश बन रहा है…
खुश होइए और तालियाँ पीटिये…क्योंकि मुल्क
बहुत तरक़्क़ी कर रहा है…..!

लेकिन याद रखना वो दिन दूर नहीं जब
लोग सड़कों पर उतर आयेंगे..तब शायद
देश को बचाना मुश्किल होगा…

इसलिए होसके तो जागिये नींद से
और बचा लीजिये देश को..वरना कुछ भी नहीं बचेगा
न हम न आप..!

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