मेरी बातें तुम्हें अच्छी लगतीं, ये तो हमको पता ना था
तुम हो मेरे हम हैं तुम्हारे, ये कब तुमने हमसे कहा
जिस दिन से है जाना मैंने आपकी इन बातों को
ना है दिन में चैन कहीं, न है रातों को..
पहली बार जो तुमको देखा, दो झरनों में डूब गए
बाँहों से तेरी हुए रूबरू, तो खुद को ही भूल गए
जिस दिन से महसूस किया है, तेरी छुअन के उन एहसासों को
न है दिन में चैन कहीं, न है रातों को…
#इश्क़_के_शहर_में..
wah.. sahi m… isqe m ho… wo mohabt ki pahli pahli batein yaad aa gayi…. par main to sahar ki kuch baatein kahna chahta hum…. http://www.kagajkalam.com/cost-of-living/
apki kavita ka link apne website m dalna chahta hun taaki … aur log bhi apki kavita pad sake…