अपना जुक्कू (मार्क जुकरबर्ग) क्या दिमाग और टीम रखा है,भाई ! दाद देना पडेगा ! बोले तो पीठ थपथपा कर शाबाश कहना चाहिये। मगर जुक्कू व्यस्त बहुत है। आजकल फेसबुक का होमपेज पे नये-नये फीचर आये हैं। ब्राऊज़ बटन जो अभी-अभी एड की गयी है नज़र से गुज़री, सोचा ऑरकुट का ज़माना भी याद कर लिया जाये।
पहले Orkut हुआ करता था फिर अचानक फेसबुक शानदार एंट्री हुई,बिल्कुल वैसे ही जैसे 2014 के पूर्वानुमान में सारे चैनल मोदी-मोदी कर रहे थे, और अब अचानक कांग्रेस को बढत पे बता रहे हैं। ऑरकुट का समय बहुत कम रहा,बिल्कुल वैसे ही जैसे भाजपा सिर्फ आखिरी छ: माह के लिये आगे बताई जा रही थी।
वैसे ऑरकुट मे स्क्रेप होते थे, मज़ा आता था। मगर फेसबुक मे स्टेटस पे कमेंट और लाईक की बात ने सबकुछ भुला दिया । ये वैसी ही बात है, कि मंच से झूठा इतिहास और बनावटी दर्द,और फेकमफाक मज़े लेने और हंसने के लिये मस्त चीज़ है। मगर लोगों के बीच जाकर अपना घोषणा-पत्र तैयार करना, अलग-अलग वर्ग के लोगों के बीच जाकर उनकी सम्स्याओं को सुनना। हमे धीर एवम गम्भीर बनाता है। राहुल जी और विपक्ष मे यही तो अंतर है।
वैसे ये ऑरकुट और फेसबुक हम उपयोग ही न कर पाते यदि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी इस देश को कम्प्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी से परिचय कराकर सूचना क्रांति को इस देश मे जन्म देकर, सूचना एवम प्रौद्योगिकी मे देश को विश्व के अग्रणी देशों मे शामिल कराने के स्रोत न बनते।
वैसे ऑरकुट मे कम्युनिटी बनाने का ऑपशन था,तो फेसबुक मे ग्रुप और पेज की बात ही कुछ और है। ये ब्ल्कुल वैसे ही है,कि विपक्ष कुछ भी कहे, आर.टी.आई, नरेगा,खाद्य सुरक्षा कानून, भूमी अधिगृहण बिल अपने आप मे एक मुक़ाम रखते हैं।