शायद मै जो लिख रहा हूँ उससे कई लोग सहमत न हों !
बहुत से लोग अपनी विचारधारा के प्रचार के लिये देशप्रेम के शब्द को देशभक्त मे परिवर्तित करके बात करते हैं। जबकि वोह जानते हैं,कि एक समुदाय विशेष के लिये भक्ति या इबादत शब्द कोई खेल नही । समुदाय विशेष भक्ति या इबादत सिर्फ इस संसार के पालनहार,इस संसार के रचनाकार की करता है। वोह उसकी बनाई प्रकृति से प्रेम कर सकता है। परंतु प्रकृति विशेष की उपासना नही करता । इस संसार मे बहुत से लोग आदर्णीय हो सकते हैं, परन्तु पूज्नीय सिर्फ वही है जिसने इस संसार को बनाया । जो इस संसार का रचीयता है।
वोह समुदाय और कोई समुदाय नही बल्कि इस देश का मुस्लिम समुदाय है । जो इस मुल्क से टूट के मुहाब्बत करता है। लोगों का सम्मान करता है, मगर इबादत सिर्फ इस संसार के रचियता की करता है। जब आस्था का सवाल इधर हो या उधर लोग उसपे राजनीति करने लगते हैं। अगर कोई ये कहे कि वोह मुल्क से मुहब्बत करता है मगर इबादत उस पालनहार की करता है,जिसने मेरे इस प्यारे मुल्क को बनाया है। साथ ही वोह ये भी कहे आदर और सम्मान तो सबका करता है मगर उपासना और इबादत उसकी करता है, जिसने इन आदर्णियों और सम्मानियों को बनाया । आपको किसने हक़ दिया कि ऐसे शख्स को आप अपना फालतू का सर्टिफिकेट दें,जिसमे आप अपनी बनाई हुयी परिभाषा को आधार बनाकर पूरे देश भर के देशप्रेमियों को सिर्फ इसलिये कटघरे मे खडे कर दें कि वोह मुल्क की इबादत (भक्ति या उपासना) नही करते । जबकि मुहब्बत तो ये टूट के करते हैं।
मगर इस क़ौम को क्या, पूरा मुल्क जानता है आप ये सर्टिफिकेट बांटेंगे ।
क्योंकि आपको सत्ता जो चाहिये! देशहित मे काम कीजिये लोगों को जोडिये, तोडने का काम खूब कर चुके।